Harela Festival In Uttarakhand : उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य भले ही छोटा क्यों न हो लेकिन ये अपनी प्राकृतिक सौंदर्यता, तीर्थस्थल और संस्कृति के लिए विश्वभर में प्रचलित है। इतना ही नहीं पहाड़ की संस्कृति और इसके त्यौहारों का भी एक साथ खास रिश्ता है। तभी तो इन्हीं त्योहारों से पहाड़ का हर जनमानस जुड़ा हुआ है। पहाड़ के सभी त्योहारों में से एक है उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला भी जो पर्यावरण संरक्षण और संस्कृति का भी संदेश देता है।
Harela Festival In Uttarakhand : हरेला पर्व की ये है मान्यता
उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला आज बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। कहते है कि इस दिन से उत्तराखंड में सावन की शुरूआत होती है। हरेला कुमाऊं अंचल का प्रमुख त्योहार है। प्रकृति से जुड़ा ये लोक पर्व हरियाली और आस्था का प्रतीक होने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है। माना जाता है कि हरेला की पूर्व संध्या पर महिलाएं शिव पार्वती परिवार की पूजा करती है।
Harela Festival In Uttarakhand : इस दिन जिस स्थान पर हरेला बोया जाता है वहां पर गांव की शुद्ध स्थान की मिट्टी और आटे से शिव, पार्वती, गणेश, नंदी और मूषक आदि की प्रतिमा बनाई जाती है और साथ ही उस स्थान पर शिव परिवार की प्रतिमा की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि शिव की अर्धांगिनी सती किसी बात पर रूष्ट होकर अनाज वाले पौधों को अपना रूप दे दिया था जिसके बाद उन्होंने गौरा रूप में जन्म लिया। बस तभी से हरेला पर्व से एक दिन पहले डिकर पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है।
ऐसे करें पूजा
Harela Festival In Uttarakhand : ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी का कहना है कि हरेला पर्व की तैयारी 10 दिन पहले से शुरू हो जाती है और इस दिन एक कटोरी में पवित्र जगह की मिट्टी लाकर सात प्रकार के अनाज बोए जाते है जैसे गेहूं, चना, जौ, उड़द, गहथ, मक्का, सरसों को बोया जाता है। इसके बाद नौवें दिन इसकी गुड़ाई की जाती है और 10 वें दिन हरेला की कटाई के साथ त्योहार मनाए जाने की परंपरा है। उन्होंने आगे कहा कि इस दिन बड़े बुजुर्ग अपने परिवार की सुख शांति के साथ ही बच्चों की लंबी उम्र की कामना कर मंदिर में पूजा—अर्चना करते है।
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