बीते रोज उत्तराखंड सरकार द्वारा यूसीसी की नियमावली का ड्राफ्ट जारी किया गया और कहा जा रहा है कि बहुत जल्द उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा,इस पर उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने प्रतिक्रिया दी है। दसौनी ने कहा की केदारनाथ का उपचुनाव अपने हाथों से फिसलता देख यूसीसी लाने में जल्दबाजी कर रही है उत्तराखंड भाजपा। गरिमा ने कहा कि समान नागरिक संहिता उत्तराखंड वासियों की मांग कभी नहीं रही।
उत्तराखंड के मूल सरोकार हैं एक अदद पूर्णकालिक राजधानी, सख्त भू – कानून, मजबूत लोकायुक्त, मूल निवास, ग्रामीण अंचलों की तड़पती प्रसूंताओं को सुरक्षित प्रसव, राज्य के बेरोजगार युवाओं के हाथों को काम, किसानों को समर्थन मूल्य और महिलाओं को सुरक्षा।
दसौनी ने कहा कि समान नागरिक संहिता का अर्थ होता है एकरूपता और समाज में एक समानता परंतु एक तरफ यह एक रुकता नहीं देश और उत्तराखंड में रहेगी,और तो और जब उत्तराखंड की समस्त जनता ही पूरी तरह से यूसीसी में कवर्ड नहीं है। उत्तराखंड सरकार बताएं की बोकसा, थारू, भोटिया, जौनसारी यह सभी जनजातीय जो यहां उत्तराखंड की निवासी हैं, क्या उत्तराखंड सरकार उन्हें उत्तराखंड का नागरिक नहीं समझती? यदि किसी कारणवश यूसीसी इन तमाम जनजातीयों पर लागू नहीं हो सकती थी तो बाकी बची हुई जनता ने क्या इसकी मांग की थी? जो बाकियों पर थोपना जरूरी था। गरिमा ने यह भी कहा की उत्तराखंड मूलतः हिंदू बाहुल्य राज्य है और हिंदुओं के लिए जितनी बातें यूसीसी में कही गई हैं वह पहले से ही हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में आच्छादित है। ऐसे में उत्तराखंड यूसीसी से कैसे लाभान्वित होगा और भविष्य में कितना व्यावहारिक होगा यह भविष्य के गर्भ में है। गरिमा ने कहा कि एक तरफ उत्तराखंड में पठन-पाठन करने वाले नौनिहालों के लिए मूलभूत सुविधाओं का अकाल है, वहीं स्वास्थ्य सेवाएं लचर हैं ,सड़कों का हाल बेहाल है, युवा भर्ती परीक्षा में हो रही धांधली से परेशान है महिला दुष्कर्म में अचानक प्रदेश में बढ़ोतरी हो गई है और तो और लव जिहाद लैंड जिहाद और थूक जिहाद की बात करने वाली रेप जेहाद की बात करने से बच रहे हैं क्यों सत्ता पक्ष की ओर से रेप जिहाद के लिए सख्ती नहीं दिखाई जा रही।