उत्तराखंड में तपीश बढ़ने के साथ ही सियासी वोलटेज हाई है जहां एक तरफ प्रदेश गर्मी से जूझ रहा है और जंगल आग से धधक रहे है तो वहीं कई जिलों में गहराता पानी का संकट लोगों के लिए चुनौती खड़ी कर रहा है। इस बीच 2000 हजार पेड़ों के कटान ने पर्यावरण को मुंह तो चिढ़ाया ही बल्कि सरकार पर सवालियां निशान भी खड़े किए है।
प्रदेश में गर्मी बढ़ने के साथ ही पेजयल संकट गहराने लगा है। ऐसे में देहरादून के कई इलाकों में पानी की समस्या से निजात पाने के लिए पेयजल योजना का कार्य चल रहा है लेकिन इस योजना के लिए खलंगा में 2000 पेडों का कटान होना गंभीर विषय है। मामले को लेकर भाजपा विधायक विनोद चमोली का कहना है कि पेयजल योजना को लेकर पेड़ो के कटान की बात सामने आई है और उनका भी मानना है कि प्राकृतिक के दोहन से बचना चाहिए। उन्होंने इस संबंध में अन्य विकल्प खोजने की बात अधिकारियों से करने का आश्वासन दिया। अन्य विकल्प नहीं होने पर पानी की आवश्कता को देखते हुए यदी 2000 पेड कट रहे है तो कम से कम 25 हजार पेड लगने चाहिए ताकि समास्या का समाधान होने के साथ पेडो के कटान की भरपाई हो सके।
राजधानी देहरादून में लगातार विकास कार्यों के नाम पर पेड़ों का कटान किया जाना चिंता का विषय है। शहर में जलापूर्ति को लेकर खलंगा वन क्षेत्र पर जलाशय निर्माण को लेकर करीब 2000 पेड़ कटान किए जाने हैं। इस वन क्षेत्र को बचाने को लेकर तमाम सामाजिक, राजनीतिक, व जन संगठन पुरजोर विरोध कर रहे हैं। तो वहीं मामले को लेकर अब सियासत भी खूब गरमाने लगी है। कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट का कहना है कि जहां एक तरफ देश में वृक्षारोपण पर जोर दिया जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ बड़ी संख्या में पेड़ो को काटा जा रहा है। पेडों का कटान बिल्कुल भी उचित नहीं है सरकार को गंभीरता से काम लेते हुए दूसरे विकल्प तलाशने चाहिए। बता दें कि बीते दिन पूर्व कैबिनेट मंत्री कांग्रेस हीरा सिंह बिष्ट व कांग्रेस के मीडिया समन्वयक राजीव महर्षि भी खलंगा पहुंचे और वन कटान का विरोध किया। उनका कहना है कि वन मानव जीवन को सुरक्षित संरक्षित रखने की जगह है। खलंगा में पेड़ों को काटने की साजिश रची जा रही है जिसका कड़ा विरोध किया जाएगा। यदि जरूरत पड़ी तो उसके लिए आंदोलन भी किए जाएंगे।
सूबे में एक बार फिर पेड़ो को बचाने के लिए कवायद शुरू हो गई है जहां एक तरफ प्रदेश में सरकार के लिए गर्मियों के सीजन में लोगों के लिए जलापूर्ति करना भारी है तो वहीं पेड़ो के कटान के लिए उठ रहे विरोध के सूरों को थामना मुश्किल से कम नहीं है। इस बीच विपक्ष और तमाम संगठन भी पेड़ो के कटान को लेकर अंदोलन की जंग छेड चुके है ऐसे में सवाल ये उठाता है कि क्या सरकार जलापूति करने के लिए क्या ठोस रणनीति बनानी है य पानी के लिए हजारों पेड़ो की बली चढ़ाती है।