निकाय चुनाव को लेकर भले ही तारीखों का ऐलान नहीं हुआ हो लेकिन सरगर्मियां अभी से तेज हो चली है। जहां एक तरफ विपक्ष लगातार सरकार पर निकाय चुनाव नहीं कराने को लेकर हावी है तो वहीं सत्तापक्ष अपना तर्क देकर इन तमाम सवालों से मुंह फेरता हुआ दिखाई दे रहा है। उधर नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार को तय समय पर चुनाव कराए जाने के सख्त निर्देश दिए है। ऐसे में ये निकाय चुनाव किस ओर मोड लेता है
उत्तराखंड में निकाय चुनाव को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं हो पाई है सरकार निकायों में प्रशासकों का कार्यकाल बढ़ाएगी या फिर तय समय पर चुनाव कराएगी इसको लेकर सस्पेंस बरकरार है। ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार प्रशासकों का कार्यकाल बढ़ा सकती है। शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का कहना है कि 6 जून तक आचार संहिता लागू है जबकि 2 जून को प्रशासकों का कार्यकाल खत्म हो रहा है। आचार संहिता के तहत कोई निर्णय सरकार नहीं ले सकती है और अभी कई अन्य चीजों पर काम चल रहा है मतदाता सूची हो या फिर आरक्षण, आने वाले दिनों में इसके बीच का रास्ता खोजा जाएगा। चुनाव की स्थिति आने पर हम चुनाव के लिए तैयार है।
निकाय चुनाव को लेकर जहां सत्ताधारी पार्टी बीजेपी आचार संहिता का खत्म होने का इंतजार कर रही है और उसके अनुरूप फैसले लेने की बात कह रही है तो वहीं कांग्रेस शुरू से ही निकाय चुनाव को लेकर सरकार को घेर रही है। कांग्रेस के चकराता विधायक प्रीतम सिंह का कहना है कि नगर निकाय चुनाव समय पर होने चाहिए लेकिन सरकार चुनाव को लगातार टाल रही है संविधान में स्पष्ट है कि चुने हुए व्यक्ति को ही चार्ज हैंडओवर और टेकओवर होनीा चाहिए लेकिन सरकार संविधान के विपरित चल रही है अभी भी सुनिश्चित नहीं है कि नगर निकाय चुनाव कब होंगे।
उत्तराखंड में निकाय चुनाव का बिगुल बजने से पहले सियासत गरमा गई है। जहां राजनीतिक पार्टियों ने अपनी जीत के लिए गुणा भाग करना शुरू कर दिया है और विरोधियों को धूल चटाने के लिए सियासी बिसात बिछानी शुरू हो गई है। तो वहीं अभी निकाय चुनाव की डेट फाईनल नहीं हुई है लेकिन उससे पहले पक्ष और विपक्ष आमने सामने आ गए है।